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अ॒ग्निं वो॑ देवय॒ज्यया॒ग्निं प्र॑य॒त्य॑ध्व॒रे । अ॒ग्निं धी॒षु प्र॑थ॒मम॒ग्निमर्व॑त्य॒ग्निं क्षैत्रा॑य॒ साध॑से ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agniṁ vo devayajyayāgnim prayaty adhvare | agniṁ dhīṣu prathamam agnim arvaty agniṁ kṣaitrāya sādhase ||

पद पाठ

अ॒ग्निम् । वः॒ । दे॒व॒ऽय॒ज्यया॑ । अ॒ग्निम् । प्र॒ऽय॒ति । अ॒ध्व॒रे । अ॒ग्निम् । धी॒षु । प्र॒थ॒मम् । अ॒ग्निम् । अर्व॑ति । अ॒ग्निम् । क्षैत्रा॑य । साध॑से ॥ ८.७१.१२

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:71» मन्त्र:12 | अष्टक:6» अध्याय:5» वर्ग:13» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:8» मन्त्र:12


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शिव शंकर शर्मा

इस ऋचा से कृतज्ञता का प्रकाश करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (ऊर्जः) हे महाशक्तियों का (नपात्) प्रदाता (सखे) हे प्राणियों का मित्रवत् हितकारी (वसो) वास देनेवाला जगदीश ! (सः) वह तू (नः+जरितृभ्यः) हम स्तुतिपाठकों को (वस्वः) प्रशंसनीय सम्पत्तियाँ और (माहिनस्य) महत्त्व दोनों देता है ॥९॥
भावार्थभाषाः - ईश्वर बलदा, सखा और वासदाता है। हे मनुष्यों ! इसका तुम अनुभव और विचार करो। वह जैसे हमको विविध दान और महत्त्व दे रहा है, वैसे तुमको भी देगा, यदि उसकी आज्ञा पर चलो ॥९॥
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शिव शंकर शर्मा

अनया कृतज्ञतां प्रकाशयति।

पदार्थान्वयभाषाः - हे ऊर्जोनपात्=ऊर्जः=बलस्य न पातयतीति। हे बलप्रद हे सखे ! हे वसो=वासक ईश ! स त्वम्। नोऽस्मभ्यं जरितृभ्यः स्तुतिपाठकेभ्यः। वस्वः=धनम्। माहिनस्य=महत्त्वं च। उपमासि=प्रयच्छसि समीपे ॥९॥